Modi–Xi Warm Meeting and Trump’s Tariff Tantrum: The New Reality of India-China Relations in 2025

Modi–Xi Warm Meeting and Trump’s Tariff Tantrum: The New Reality of India-China Relations in 2025

अंतरराष्ट्रीय राजनीति की दुनिया में भारत और चीन के रिश्ते हमेशा ही बेहद अहम रहे हैं। दक्षिण एशिया की दो बड़ी ताक़तें केवल भौगोलिक दृष्टि से ही नहीं बल्कि आर्थिक और कूटनीतिक दृष्टि से भी पूरी दुनिया की नज़र में रहती हैं। 2020 की सीमा झड़पों के बाद जब दोनों देशों के संबंध बिल्कुल ठंडे पड़ गए थे, वहीं 2025 की शुरुआत में एक बार फिर नई गर्मजोशी दिखाई दी। यह बदलाव केवल भारत और चीन तक सीमित नहीं है बल्कि अमेरिका, रूस और पूरे एशिया-प्रशांत क्षेत्र की शक्ति-संतुलन से भी जुड़ा हुआ है।
डोनाल्ड ट्रम्प 50% टैरिफ भारत के ऊपर लागू होने पर, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रूस प्रेसिडेंट व्लादिमीर पुतिन वर और चीन की प्रेसिडेंट शी जिनपिंग की मुलाकात बहुत महत्वपूर्ण हैं ।       
                 
                                                                      



2025 में जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अचानक भारत पर 50% आयात शुल्क लगा दिया था, तब भारत-अमेरिका रिश्तों में नया तनाव पैदा हो गया। ट्रंप के इस फ़ैसले को कई लोगों ने ‘टैरिफ़ टैंट्रम’ कहा था। भारतीय सामानों का अमेरिकी बाज़ार में प्रवेश मुश्किल हो गया और इसके चलते भारतीय कूटनीति को वैकल्पिक रास्ते खोजने पड़े। मोदी ने उसी समय रूस और चीन के साथ रिश्ते मज़बूत करने की दिशा में क़दम बढ़ाना शुरू किया।

2020 के गलवान घाटी संघर्ष के बाद भारत-चीन रिश्ते इतिहास के सबसे निचले स्तर पर पहुँच गए। सीमा पर ख़ूनी झड़प, भारतीय सैनिकों की शहादत और उसके बाद एक के बाद एक चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध लगाने का फ़ैसला भारतीय जनमानस में गहरी नाराज़गी का कारण बना। चीन ने भी सीमा पर अपनी सैन्य उपस्थिति बढ़ा दी और दोनों देशों के बीच तनाव कई वर्षों तक बना रहा।

लेकिन अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की खींचतान, कोविड-19 के बाद की नई आर्थिक वास्तविकता और अमेरिका की अनिश्चित नीतियों के कारण 2023 से भारत और चीन धीरे-धीरे फिर से बातचीत की मेज़ पर आने लगे। शी जिनपिंग ने कई बार संकेत दिया कि अगर भारत और चीन दोस्ताना रिश्ते बनाए रखते हैं तो एशिया की तरक़्क़ी तेज़ होगी। दूसरी ओर, मोदी ने भी महसूस किया कि भारत की उत्पादन क्षमता और औद्योगिक विकास को आगे बढ़ाने के लिए सस्ते कच्चे माल और दुर्लभ खनिजों की आपूर्ति बेहद ज़रूरी है, जो ज़्यादातर चीन के पास है।

2024 में अमेरिकी चुनाव में ट्रंप की संभावित वापसी की चर्चाओं ने अंतरराष्ट्रीय बाज़ार को फिर से अस्थिर कर दिया। भारत ने समझ लिया कि केवल अमेरिका पर भरोसा करना जोखिम भरा हो सकता है। इसलिए 2025 में मोदी और शी जिनपिंग की मुलाकात को केवल शिष्टाचार नहीं बल्कि रणनीतिक दृष्टि से भी बड़ा क़दम माना जा रहा है।

इस बैठक में दोनों नेताओं ने सीमा पर स्थिरता बनाए रखने का वादा किया। साथ ही उन्होंने व्यापारिक रिश्तों को फिर से शुरू करने की पहल की। विशेषज्ञों का मानना है कि यह बैठक असल में अमेरिका को संदेश देने के लिए भी थी। 2025 में ट्रंप ने भारत पर जिस तरह दबाव बनाया था, उस अनुभव ने भारत को सिखाया कि केवल पश्चिमी शक्तियों पर निर्भर रहना सही नहीं है। अब भारत बहुआयामी रिश्ते बनाना चाहता है, जहाँ रूस, चीन, यूरोप और दक्षिण-पूर्व एशियाई देश भी अहम भूमिका निभा रहे हैं।

हालाँकि चुनौतियाँ बिल्कुल कम नहीं हैं। पाकिस्तान के साथ चीन की नज़दीकी अब भी भारत के लिए बड़ी चिंता बनी हुई है। 2025 के मई महीने में भी पाकिस्तान के साथ सीमा तनाव बढ़ा था और उस समय पाकिस्तानी सेना के हाथों में चीनी हथियारों का इस्तेमाल हुआ। इसलिए भारत-चीन रिश्ते चाहे जितना भी आगे बढ़ें, सीमा राजनीति और पाकिस्तान फैक्टर हमेशा परदे के पीछे बने रहते हैं।

दूसरी तरफ़ भारत के पश्चिमी सहयोगी भी इस नज़दीकी को संदेह की नज़र से देख रहे हैं। अमेरिका चाहता है कि भारत को चीन के ख़िलाफ़ रणनीतिक साझेदार बनाया जाए। लेकिन भारत अपनी स्वतंत्र विदेश नीति बनाए रखना चाहता है ताकि वह किसी एक पक्ष पर पूरी तरह निर्भर न हो।

विश्लेषकों का कहना है कि मोदी-शी मुलाकात को किसी अवास्तविक आशावाद के तौर पर नहीं देखना चाहिए। बल्कि यह व्यावहारिक कूटनीति है। भारत जानता है कि लंबे समय तक चीन पर पूरी तरह भरोसा करना मुश्किल है। उसी तरह चीन भी जानता है कि भारत के विशाल बाज़ार के बिना उसकी अर्थव्यवस्था पूरी तरह आगे नहीं बढ़ सकती। इसी वास्तविकता के बीच दोनों देश धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे हैं।

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि 2025 में मोदी और शी जिनपिंग की गर्मजोशी भरी मुलाकात अंतरराष्ट्रीय राजनीति में एक नए अध्याय की शुरुआत है। यह भारत-चीन रिश्तों के इतिहास में एक अहम पड़ाव है, जहाँ सीमा संघर्ष, अमेरिका का ‘टैरिफ़ टैंट्रम’ और वैश्विक अर्थव्यवस्था का दबाव मिलकर नई हक़ीक़त बना रहे हैं। भविष्य में यह रिश्ता कितना स्थायी होगा यह कहना कठिन है, लेकिन फ़िलहाल इतना तो साफ़ है कि भारत और चीन एक-दूसरे की ओर फिर से हाथ बढ़ा चुके हैं।


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